Saturday 11 January 2014

Vichaar : हम ऐसे ही क्यूँ हैं


Vichaar : हम ऐसे ही क्यूँ हैं



पिछले कई सालों से राजीनीति और भ्रस्टाचार से त्रस्त आम आदमी आख़िरकार अपने आप को एक नई दिशा में सोचने और उस पर अमल करने के लिए प्रेरित किया था। इसी सोच का परिणाम है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी कि सरकार बनी। इसका प्रभाव यह भी रहा कि न चाहते हुए भी बाकी कि राजनितिक पार्टियों को भी इस नई सरकार को समर्थन देना पड़ा। यह समर्थन वाक़ई दिल्ली कि जनता के लिए न होकर उनके अपने राजनितिक फायदे के लिए है, इसमें कोई शक नहीं है। इन पार्टियों कि बस एक ही इच्छा है कि किसी भी तरह आम आदमी पार्टी के गलतियों को उजागर करें और जनता का इस पार्टी से मोह भंग हो। यह सभी हथकंडे एक हिसाब से एक लोकतान्त्रिक समाज के लिए ठीक भी है। कम से कम इसकी वजह से सत्ताधारी पार्टी थोड़ा संभल कर चलती है। लेकिन यह क्या, मीडिया, विपक्ष और आम आदमी खुद उन छोटी छोटी बातों पर गौर करने लगे हैं जो एक अच्छे शासन के लिए कोई मायने नहीं रखते।

जो मुख्य़मंत्री आम आदमी के करीब रहना चाहे और हमेशा काम करने का इच्छुक हो, क्या उसके रहने और आने जाने के लिए वाहन के बारे में इतना सोचना चाहिए ? अगर जनता कि सेवा करना है तो जनता को उसके आने जाने के लिए पैसे भी देने पड़ेंगे। अगर नहीं तो क्या वह अपने वाहन से जनता का काम करेगा ? यह आशा करना भी समझ से परे है। सरकारी वाहन, सरकारी घर, मेट्रो में जाना, बस में जाना; यह सब बस एक छलावा और भटकाव है। बात बस इतनी है कि आम आदमी को सरकार के पॉवर के आगे किसी तरह छोटापन न महसूस हो, जो अभी तक होता आ रहा है। हां, भ्रष्टाचार कि बात पर आगे बढ़िए, पूछिए कि सभी भ्रष्टाचारियों के लिए क्या करेंगे, महिलओं कि सुरक्षा के लिए क्या करेंगे, पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए क्या करेंगे, ऐसा क्या करेंगे कि जनता का एक रुपया जनता के लिए पूरा का पूरा इस्तेमाल हो, सभी बड़े बाबुओं के पास अपार संपत्ति है उसको आंकलन करके इनके पीछे सीबीआई कब लगाएंगे, बाबुओं से संपत्ति का ब्यौरा लेकर उसकी सच्चाई का पता कब लगाएंगे, ऐसा क्या करेंगे कि दिल्ली में सरकारी महकमा बस और बस जनता के लिए काम करना सुरु कर दे और अपने लिए उससे जी संतुष्ट रहे जितना उसको बेतन मिलता है? अगर यह सब समस्याएँ ख़त्म हो जाये तो जनता का सरोकार अपने आप पूरा हो जायेगा।

इतना ध्यान रखें कि सरकार को बचत तो करनी चाहिए अपनी सरकार चलाने में, लेकिन कुछ जरूरी सुविधाओ को जरूर देना होगा। अन्यथा, समय और काम करने की दक्षता में कमी आएगी



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Yahan ek baat dhyaan dilana jarooree hai ki Swyam Kejriwal ji VVIP culture sampat karne kee baat kahee thee to pehle unhee ko karnee chahiye, unke baki mantree isko apne aap folow karenge.

Shayad unka tatparya Lal Batti Kee Gadee se hee Ho, Kyunki Desh ke Minister/ CM vaegrah ko unke Adhikaron va Kaam ke Liye Jarooree suvidhayen Hotee hain.


Jab CM / Minister ke secretary ko tamaam suvidhayen uplabdh hain to CM/Minister ko kyun nahin



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Internet par Ek Bhartiye / Thought of an Indian naamak Blog be likhaa hai :

नई संस्कृति कि शुरुआत

पिछले कई वर्षों से मन धीरे धीरे निराशा की गर्त में गोते लगाते हुए और अंधकार मय होता जा रहा था। कहीं से कोई रौशनी कि लौ नहीं दिख रही थी। इस वजह से जीवन की दौड़ में जिंदगी को ढूढ़ते हुए, देश की राजनीति और संकृति से एक अनकहा वैराग्य होता जा रहा था। लेकिन आज 27 दिसंबर 2013, मेरे लिए अत्यंत सुखद समाचार लेकर आया है। पिछले दो सालो से लगातार देश कि राजनीति और उसमे ब्याप्त भ्रस्टाचार को जड़ से मिटाकर एक नई ब्यवस्था कायम करने कि आस जगाने वाले श्री अरविन्द केजरीवाल कल नई दिल्ली के रामलीला मैदान में दिल्ली के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हैं। इस नए सूरज के प्रादुर्भाव से मैं इतना ही इत्तेफाक रखता हूँ कि मेरी सोच आज किसी और के जरिये देश में अवतरित तो हो रही है। सोच यही थी कि हम जब तक खुद दृढ़ता से ईमानदार नहीं होंगे कुछ बदलने वाला नहीं है। लेकिन इस बहुसंख्यक बेईमान समाज में अकेले हम कुछ नहीं कर सकते जब तक हम अपने साथ बहुत सारे ईमानदारों को एक साथ लेकर उस गर्त में न घुसें और जब तक हम खुद अपने जीवन में इसको चरितार्थ करें। मेरे अंदर उतना त्याग, निडरता और वाक्पटुता न होने के कारण मैं यह काम नहीं कर सकता। लेकिन अपने जीवन का मालिक खुद होने के कारण वह सभी गुण चरितार्थ कर सकता हूँ। इसलिए मैं अपने को ईमानदार रख सका और रखूंगा भी क्योंकि मैं तटस्थ हूँ जीवन में किसी भी हालत में जीवन निर्वाह कर सकने के लिए। बस मैं वह नहीं कर सकता जो श्री केजरीवाल ने किया क्योंकि मेरे अंदर शायद वह जज्बा और वह निडरता नहीं है। लेकिन मेरे इस कमी के पूरक बने श्री केजरीवाल और उनकी टीम। और इसीलिए आज मैं बहुत खुश हूँ। देश में जाति, धर्म, छेत्र, भाषा आदि से परे एक नई राजनितिक संस्कृति का प्रादुर्भाव होने जा रहा है। 66 सालों कि आजादी के बाद शायद आज का ही दिन है कि देश का आम आदमी समझ जायेगा कि जो होता आया था उससे भी अलग एक रास्ता है जिस पर चला जा सकता है। आज के राजनितिक परिवेश और इसके हथकंडों से हो सकता है कि श्री केजरीवाल का भूचाल शायद आगे जाकर थम जाये, लेकिन आज मुझे हर्ष है कि उन्होंने देश को एक ऐसी राजनितिक संस्कृति का बोध कराया है जो भारतीय जनमानस पर एक गहरा चिन्ह छोड़कर जायेगा










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